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शहीदो के गांव‌ कुतीना की पहाडी वर्ष मे दो बार आयोजित नवरात्रि महोत्सव के चलते मन्दिर में कई गई विशेष सजावट एवं ग्रामीणों द्वारा बनाई ग‌ई कलात्मक गुफा दूर दराज से आये श्रद्धालुओं को खासा प्रभावित करती है। - Khabrana.com शहीदो के गांव‌ कुतीना की पहाडी वर्ष मे दो बार आयोजित नवरात्रि महोत्सव के चलते मन्दिर में कई गई विशेष सजावट एवं ग्रामीणों द्वारा बनाई ग‌ई कलात्मक गुफा दूर दराज से आये श्रद्धालुओं को खासा प्रभावित करती है।
January 1, 2025

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शहीदो के गांव‌ कुतीना की पहाडी वर्ष मे दो बार आयोजित नवरात्रि महोत्सव के चलते मन्दिर में कई गई विशेष सजावट एवं ग्रामीणों द्वारा बनाई ग‌ई कलात्मक गुफा दूर दराज से आये श्रद्धालुओं को खासा प्रभावित करती है।

शाहजहांपुर 9 अप्रैल – शहीदो के गांव‌ कुतीना की पहाड़ी पर दूर दराज से नजर आती मानव कद प्रतिमाएं बरबस लोगों का ध्यान केन्द्रित करती है। वर्ष मे दो बार आयोजित नवरात्रि महोत्सव के चलते मन्दिर समिति द्वारा की ग‌ई विशेष सजावट एवं ग्रामीणों द्वारा बनाई ग‌ई कलात्मक गुफा दूर दराज से आये श्रद्धालुओं को खासा प्रभावित करती है।

सबसे पहले पहाड़ी पर गांव के ही माधो सिंह राजपूत ने मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की थी। माधो सिंह के प्रपौत्र मोहन सिंह एवं शिक्षाविद् विजय चौहान ने बताया की माधो सिंह सेना में रहते किसी जगह माता के मंदिर में गए थे, वहां उन्होंने माताजी से कोई मन्नत मांगी थी और माता से कहा था कि यदि मेरी यह इच्छा पूरी हो गई तो मै गांव में आपकी मूर्ति की स्थापना करवाऊंगा ।

बताते हैं कुछ दिन बाद उनकी वह इच्छा पूरी हो गई और माधो सिंह ने मां दूर्गा की मूर्ति ला कर घर के एक बक्शे में रख दी। अनेकों दिन बीतने के बाद माधो सिंह जब गांव आए तो एक दिन मां ने रात को उन्हें सपने में दर्शन दिए और कहा की पुत्र अब तो हमे बक्से से निकाल कर कहीं स्थापित करवाओ।

तो उन्होंने कहां की मां मै आपको कहां स्थापित करवाई, जिसपर माता ने उन्हें कहां कि मै एक सोन चिड़ी बन कर तेरे पास आउंगी और मै जहाँ बैठू वहीं मेरी मूर्ति स्थापित कर देना।सुबह माधो सिंह ने बुजुर्गों से पूछा तो सभी ने यही राय दी कि जैसा दिखा है वैसा ही करो।

कहते हैं कि उनको सोन चिड़ी दिखाई दी, वह उसके पीछे पीछे गए जहां वह अंत में कुतीना की इस पहाड़ी पर बैठी, वहीं माता की मूर्ति प्राण प्रतिष्टित कर दी ग‌ई। कालांतर में वहां साथ साथ माता के तीन मंदिर ओर बने, जिनमे एक मन्दिर व धर्मशाला महावीर प्रसाद अग्रवाल ने बनवाई।

बिना किसी भेदभाव, जात पात के श्रद्धालु माता के दर्शनार्थ आते हैं। दुर्गा धाम सीधी पहाड़ी पर होने की वजह से वहां तक जाना कठिन था जिसको देखते हुए गांव के ही सेठ मोती लाल ने गांव से लेकर मंदिर तक पक्की सीढियाँ बनवा दी। बाद में श्रद्धालुओं ने पहाड़ी के पीछे गांव से मंदिर तक चौड़ा रास्ता बनवा दिया जिस पर वर्तमान में सीसी रोड़ का कार्य दुर्गा धाम महंत शरद गिरी जी महाराज की देख रेख में चल रहा है। अब दुर्गा धाम तक गाड़ियां आराम से आ जाती हैं ।

दुर्गा धाम के सामने श्रद्धलुओं के सहयोग से बोर वेल, पार्क ,कलात्मक गुफा, साँई बाबा मन्दिर, श्यामजी, शिवजी, हनुमान जी,भैंरव जी आदि के कलात्मक मंदिर बनाए गए हैं। गुफा में जंगली जानवरों की ऐसी सजीव सी लगने वाली मूर्तियां बनाई गई हैं जिन्हें देख कर बच्चे तो क्या बड़े भी एकदम ठिठक जाते हैं। मंदिर के समीप ही मंदिर के महंत शरद गिरी जी महाराज का निवास महंत के शिष्य निरंजन सिंह ने बनवाया है।

मंदिर की भव्यता एवं सुन्दरता दूर दूर तक प्रसिद्ध है। श्रद्धालु ही नहीं विभिन्न विद्यालयों के वाहन बच्चों को पर्यटन की दृष्टि से घुमाने के लिए लाते है।

मन्दिर से कुछ ही दूरी पर कप्तान गोबिंद सिंह द्वारा बनवाया गया मां दुर्गा का मंदिर ,प्राचीन जीण माता का मन्दिर तथा पहाड़ के दूसरे छोर पर बाबा कुन्दनदास जी व पहाड़ की तलहटी जहां से माता के मंदिर को रास्ता आता है वहां गोगा जी का भव्य मंदिर स्थित है ।