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संत, सैनिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समान नागरिक संहिता की मांग की। राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ जरूरी - आचार्य लोकेश जी - Khabrana.com संत, सैनिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समान नागरिक संहिता की मांग की। राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ जरूरी - आचार्य लोकेश जी
December 24, 2024

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संत, सैनिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समान नागरिक संहिता की मांग की। राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ जरूरी – आचार्य लोकेश जी

नई दिल्ली (केडीसी) राष्ट्रीय सैनिक संस्था द्वारा ‘समान नागरिक संहिता’ पर वेबिनार का आयोजन किया गया जहां राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द के लिए संत, सैनिक, शिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक स्वर से समान नागरिक संहिता की मांग की। इस वेबिनार में, अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक जैनाचार्य डॉ लोकेशजी, सुमेरु काशी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्रनन्दजी, महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर लद्दाख के अध्यक्ष भिक्खु संघसेनाजी, ले. जनरल अश्वनी कुमार बक्शी, ले. जनरल चन्द्र प्रकाश वाधवा, ले. जनरल गुरमीत सिंह, राष्ट्रीय सैनिक संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल तजेन्द्र पल त्यागी, रूट्स इन कश्मीर के संस्थापक सुशील पंडित, यहूदी धर्म से ईसाक मालेकर, राष्ट्रीय सैनिक संस्था दिल्ली की सचिव डॉ सपना बंसल, श्री राजीव खोसला आदि ने हिस्सा लिया एवं समान नागरिक संहिता को देश में लागू करने पर ज़ोर दिया।
शांतिदूत आचार्य डॉ लोकेशजी ने कहा कि राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द के लिए समान नागरिक सहिंता जरूरी है इससे समाज में सौहार्द बढ़ेगा तथा अन्याय, शोषण जैसे कृत्यों पर अंकुश लगेगा। उन्होने माननीय प्रधानमंत्री एवं भारत सरकार से आह्वान किया कि समान नागरिक संहिता कानून जल्द से जल्द संसद में पास किया जाएँ।
सुमेरु काशी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्र नन्दजी ने कहा कि समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा। महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर लद्दाख के अध्यक्ष बाउध भिक्खु संघसेनाजी ने कहा कि समान संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों। ले. जनरल अश्वनी कुमार बक्शी ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना ही चाहिए । ले. जनरल चन्द्र प्रकाश वाधवा ने कहा कि एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है। ले. जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है, ताकि उनमें से प्रत्येक में पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी पहलुओं को रेखांकित कर मौलिक अधिकारों के आधार पर उनका परिक्षण किया जा सके। रूट्स इन कश्मीर के संस्थापक सुशील पंडित ने समान नागरिक संहिता के विचार का समर्थन किया ।
यहूदी धर्म से इसाक मालेकर ने कहा कि अन्य देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले ही किया जा चुका है । फ्रांस में कॉमन सिविल कोड लागू है जो वहां के हर नागरिक पर लागू होता है। राष्ट्रीय सैनिक संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल तजेन्द्र पाल त्यागी ने कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर का कहना था कि पर्सनल लॉ में सुधार लाए बग़ैर देश को सामाजिक बदलाव के युग में नहीं ले जाया जा सकता। इसीलिए देश का ये दायित्व होना चाहिए कि वो ‘समान नागरिक संहिता’ यानी यूनिफॉर्म सिविल को अपनाये। राष्ट्रीय सैनिक संस्था दिल्ली की सचिव डॉ सपना बंसल ने कहा कि आलोचनाओं को स्वीकार किए बगैर प्रगति नहीं हो सकती। लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता अत्यंत आवश्यक है। अनेकानेक देशों में कॉमन सिविल कोड़ पहले से ही लागू है।