अलवर (कमलकांत शर्मा )योगेश जांगिङ संगीत शास्त्र केन्द्र अलवर के तहत आयोजित ऑनलाइन संगीतकार वेबिनार में देश के तमाम संगीत से जुडे प्रबुद्धजनों ने भाग लिया।
बेबिनार मे संगीत मर्मज्ञ योगेश जांगिड द्वारा मुर्च्छना पद्धति की गूढ़ता बताते हुए तीन ग्राम और इक्कीस मुर्च्छना का विस्तृत वर्णन किया गया । संगीत प्रबुद्धजनों द्वारा जांगिड की अध्यापन शैली को जमकर सराहा गया। बेबिनार का संचालन करते हुवे संगीत उपासक अर्पित शर्मा ने स्वरचित वर्णित छंद और मंगलाचरण से किया वेबिनार की शुरुआत की ।
संगीत मर्मज्ञ योगेश जांगिङ ने मूर्च्छना पद्धति को समझाते हुए मूर्च्छना को परिभाषित किया एवं मूर्च्छना शब्द की पुष्टि की। इसी के साहचर्य जांगिड ने मूर्च्छना शब्द का सृजन मूर्च्छ धातु से बताते हुए इसका अभिप्राय चमकाने, उभारने व व्यक्त करने से बताया ।
जांगिड ने आधुनिक थाट का मूर्च्छना से ताल्लुक समझाते हुए आधुनिक थाट को प्राचीन मूर्च्छना के समकक्ष भी बताया । उन्होने बताया की ग्राम से मूर्च्छना का सृजन हुआ है । जिसके कई सनद सहित उदाहरण भी सभी संगीत रसिक, उपासक,व प्रबुद्धजनों के सम प्रस्तुत किये गये है ।
इसी कङी में मूर्च्छना के परिप्रेक्ष्य में मूर्च्छना की विधी और मूर्च्छना भेद समझाते हुवे भरत मुनि (नाट्यशास्त्र प्रणेता), सारंग देव (संगीत रत्नाकर प्रणेता) और पं.विष्णु नारायण भातखंडे की अभिनव राग मंजरी के श्लोकों से गुणीजनों की विद्वत्ता को स्मरण कराया गया।प्राचीनता से है। जिसमे वह पूर्ण रूप से जुटे है।
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