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आचार्य लोकेशजी ने सिंगापुर जैन रेलीजियस सोसाइटी की दो दिवसीय व्याख्यानमाला को संबोधित किया।भगवान महावीर का दर्शन मौजूदा समय में अधिक प्रासंगिक – आचार्य लोकेश - Khabrana.com आचार्य लोकेशजी ने सिंगापुर जैन रेलीजियस सोसाइटी की दो दिवसीय व्याख्यानमाला को संबोधित किया।भगवान महावीर का दर्शन मौजूदा समय में अधिक प्रासंगिक – आचार्य लोकेश
December 24, 2024

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आचार्य लोकेशजी ने सिंगापुर जैन रेलीजियस सोसाइटी की दो दिवसीय व्याख्यानमाला को संबोधित किया।भगवान महावीर का दर्शन मौजूदा समय में अधिक प्रासंगिक – आचार्य लोकेश

नई दिल्ली (केडीसी) सिंगापुर जैन रेलीजियस सोसाइटी द्वारा आयोजित दो दिवसीय व्याख्यानमाला को अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डॉ लोकेश मुनी जी ने संबोधित किया। जहां जैन जीवन शैली में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, व्यक्ति के मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य पर चर्चा की गयी।

अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जैनाचार्य डॉ लोकेश मुनी जी ने कहा कि जैन दर्शन एक वैज्ञानिक दर्शन है वह स्वस्थ, सुखी व आनंदमय जीवन शैली है जिसे अपनाने से एक संतुलित व्यक्तिव और संतुलित समाज की संरचना संभव है | उन्होने कहा भगवान महावीर दर्शन वैज्ञानिक रूप से भी प्रमाणित है| वास्तव में भगवान महावीर केवल आध्यात्मिक गुरु नहीं थे, बल्कि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक भी थे | वैज्ञानिक, सच तक पहुंचने के लिए प्रयोगशाला में प्रयोग करते हैं, भगवान महावीर ने अपने शरीर को एक प्रयोगशाला बनाया | वह सत्य जो उन्होंने गहन ध्यान, तपस्या और साधना के बाद अनुभव किया, वह हमें दिया जो जैन आगमों में उपलब्ध है |आचार्य लोकेश जी ने बताया कि भगवान महावीर ने मोक्ष के चार मार्ग बताए है जिसमे तपस्या एक है, उनके अनुसार अनशन (उपवास) आदि निर्जरा के बारह भेद तपस्या के विविध प्रकार है उनोदरी, स्वाध्याय, ध्यान आदि। उपवास का सही अर्थ है आत्मा के निकट निवास करना। उन्होने कहा कि आहार और अध्यात्म का गहरा संबंध है । आहार से हमारा आचार, विचार, व्यवहार एवं संस्कार प्रभावित होता है, भोजन केवल हमारे शरीर को ही नहीं, बल्कि हमारे मन, बुद्धि, इंद्रिय भावना और आत्मा सबको प्रभावित करता है। भगवान महावीर ने सत्य की खोज और आत्म साक्षात्कार के लिए नियमित रूप से ध्यानभ्यास करने पर बल दिया था उन्होने कहा ध्यान से आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है आत्मा भिन्न शरीर भिन्न इस भेद विज्ञान की अनुभूति होती है यही से अध्यात्म यात्रा का शुभारंभ होता है। उन्होने बताया कि स्वाध्याय के दो अर्थ हैं आध्यात्मिक दृष्टि से अपने आपको जानना स्वाध्याय है और लोकिक दृष्टि से ज्ञान-विज्ञान की जानकारी होना भी स्वाध्याय है। भगवान महावीर की वाणी के अनुसार स्वाध्याय से विवेक चेतना का जागरण होता है उसी से व्यक्ति अच्छे और बुरे का ज्ञान कर पाता है। जीवन में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आते है, कभी सफलता तो कभी विफलता मिलती है किन्तु समता योग की साधना में संलग्न साधक उससे विचलित नहीं होता है, न ही मानसिक संतुलन खोता है बल्कि मन की शांति, समता और समाधि के साथ वह प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितियों को भी धैर्य के साथ पार पा लेता है। आचार्य लोकेश जी ने ध्यान की सैद्धांतिक जानकारी देते हुए कहा कि मन की शांति और तनावमुक्ति के लिए भी ध्यान का अभ्यास बहुत उपयोगी है, इससे नकारात्मक भाव नष्ट होते है एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उन्होने कहा ध्यान के द्वारा अनेक प्रकार की मनोकायिक बीमारियों का भी समाधान होता है।